श्रद्धा से श्राद्ध करे, पूर्वजों के आशीर्वाद से ही प्राप्त होता है नाम यश

 

डॉ सरस्वती देवकृष्ण गौड़ 
एस्ट्रो साइंटिस्ट दीदी

7 सितंबर, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृ पक्ष का प्रारंभ होने जा रहा है जो 21 सितंबर सर्वपितृकार्य अमावस्या को अंतिम श्राद्ध के रूप में पूर्ण होगा।इसमें 10 सितंबर को तृतीया एवं चतुर्थी तिथि का श्राद्ध एकसाथ एक ही दिन होने से इस वर्ष श्राद्ध पक्ष सोलह दिन तक नहीं बल्कि पंद्रह दिन तक रहेगा।

गरुण पुराण में पूर्वजों के प्रति श्राद्ध कर्म के महत्व को वर्णित किया गया।गरुण पुराण के अनुसार श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों के प्रति अपने श्रद्धा भाव को प्रकट करने,उनके प्रति मातृ- पितृ ऋण को चुकाने एवं उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है।श्राद्ध पक्ष में वर्तमान पीढ़ी के द्वारा अपने मृतक पूर्वजों को स्मरण करते हुए धार्मिक दान पुण्य,तर्पण आदि के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन किया जाता है।

यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु दुर्घटनावश अथवा असमय मृत्यु हुई हो तो माना जाता है कि उसे प्रेत योनि में उन बची हुई स्वासों को पूर्ण करना पड़ता है और जब प्रेतयोनी में स्वासें पूर्ण हो जाती है तब उस आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।ऐसे में उनके मृत आत्माओं के लिए श्राद्ध कर्म करना आवश्यक हो जाता है।यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो उस परिवार को नाना प्रकार के कार्यों में कई तरह के विघ्नों का सामना करना पड़ता है।इसके अलावा यदि किसी मृत शरीर का विधि-विधान से अंतिम संस्कार ना किया गया हो तब उस मृत आत्मा को शांति प्राप्त नहीं होती है और उन्हें प्रेत योनि में भटकाव सहना पड़ता है।ऐसे में श्राद्ध कार्य करने से उसकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है।

श्राद्ध कर्म न करने से पितृ दोष लग जाता है जिसके कारण घर में किसी न किसी सदस्य को लंबी बीमारी का सामना करना पड़ सकता है,परिवार में झगड़े व अशांति की स्थिति बनी रह सकती है,कई परिवारो में विवाह एवं संतान से संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है और पितृ दोष के कारण कामकाज व व्यापार से संबंधित लगातार घाटा व हानि उठानी पड़ सकती है।ऐसे में यदि अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा से श्राद्ध कर्म को पूर्ण कर लिया जाए तो उनके आशीर्वाद से जीवन की कई सारी समस्याओं से निजात पाई जा सकती है। 

प्रत्येक व्यक्ति के लिए पूर्वजों के लिए श्राद्ध कर्म करना अपने पूर्वजों के प्रति अपना एक ऋण चुकाना होता है और अपने कर्तव्य का पालन करना होता है।जिस भी घर परिवार में श्राद्ध कर्म श्रद्धानुसार पूर्ण किए जाते है उस परिवार पर पूर्वजों का आशीर्वाद सदैव बना रहता है जिससे उनके संतानों के जीवन में कम से कम बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

किस दिन करे पूर्वजों का श्राद्ध

जिस तिथि को परिजन की मृत्यु हुई हो उसी तिथि के दिन उसके प्रति श्राद्ध कार्य करना चाहिए।

जिनके परिजन की दुर्घटना में अथवा अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध अष्टमी तिथि अथवा अमावस्या के दिन किया जाता है।जिनकी तिथि याद नहीं हो अथवा किसी कारणवश उस तिथि पर श्राद्ध कर्म पूर्ण करना संभव नहीं तो तब ऐसी स्थिति में सर्व पितृ कार्य अमावस्या के दिन श्राद्ध कार्य पूर्ण किया जा सकता है।


श्राद्ध कितनी पीढ़ी तक किया जाना चाहिए।

वैसे तो सात पीढ़ी तक श्राद्ध कार्य किया जा सकता है लेकिन

शास्त्रों में वसु, रुद्र और आदित्य को श्राद्ध कार्य का देवता बताया गया है।श्राद्ध पक्ष में प्रमुखतया तीन पीढ़ियों तक श्राद्ध कर्म किया जा सकता है।व्यक्ति के तीन पूर्वज, पिता के रूप में वसु, दादा के रूप में रुद्र और परदादा के रूप में आदित्य को देवता मानकर श्राद्ध कार्य पूर्ण किया जाता है।


श्राद्ध कर्म में क्या करना चाहिए।

पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए सुचिता का पालन करते हुए भाव से ब्राह्मणों को सात्विक भोजन कराना,उन्हें वस्त्र दक्षिणा आदि देना,तर्पण करना,दान-पुण्य करना,पशु पक्षियों को भोजन खिलाना और पितरों के लिए खीर आदि अर्पित करना आदि कार्य किए जाते है।

तर्पण के लिए किसी के नदी के किनारे जाकर अथवा घर पर ही एक तांबे के बर्तन में काले तिल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल और पानी डालकर और कुशा को हाथ में लेकर पितरों का ध्यान करते हुए कुल गोत्र को उच्चारित करते हुए तर्पण किया जाता है।इसके अलावा मृतक की शांति के लिए पवित्र नदी के किनारे जाकर पिंडदान भी किया जाता है।

नियमानुसार श्राद्ध का भोजन निकालने के लिए पांच भाग करके रखना चाहिए।

पहला भाग गौ माता के लिए,दूसरा भाग कौवे के लिए तीसरा भाग कुत्ते के लिए चौथा भाग चींटियों के लिए और पांचवां भाग देवताओं के निमित्त रखना चाहिए।कौवे के भाग को छत पर खीर और जल सहित एक थाली में रखा जाता है,मान्यता है कि छत पर रखे इस भोजन को पितृ ग्रहण करते है।इन पांचों भागों को निकालने के पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।भोजन में लहुसन,प्याज, बैंगन,कद्दू,कड़वी सब्जियां,बासी भोज्य सामग्री, अचार आदि वर्जित माना गया है।श्राद्ध का भोजन गाय के दूध व घी से बना हो तो उत्तम माना जाता है।

श्राद्ध पक्ष के दौरान मुहूर्त, यज्ञ हवन,गृहप्रवेश,नूतन कार्यारंभ,आभूषण वस्त्र आदि की खरीददारी जैसे शुभ कार्य वर्जित माने गए है।इसके अलावा कोई भी मांगलिक कार्य इस पितृ पक्ष में किया जाना अशुभ माना जाता है। श्राद्ध कार्य को यथासंभव श्रद्धा से एवं नियमानुसार सात्विक मन कर्म व सुचिता के साथ पूर्ण करना चाहिए।इससे पितृ प्रसन्न होकर अपना आशीर्वाद उस घर परिवार पर बनाए रखते है जिससे उनके घर में सुख शांति एवं उनके सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते जाते है। व्यक्ति का कुल,गोत्र,नाम, यश आदि इन पूर्वजों की ही देन है अतः पूर्वजों के प्रति अपने कर्तव्य का पालन नियमानुसार करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य बन जाता है।श्राद्ध कार्य के कारणवश यदि प्रकृति का संरक्षण होता हो,पशु पक्षी के प्रति करुणा भाव प्रकट होता हो एवं अपने हाथ से दान पुण्य करने का अवसर प्राप्त होता है तो इस पुण्य कार्य को व्यक्ति के लिए सद्भावना से कर लेना उपयुक्त होता है।


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